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Showing posts from July, 2020

विषयों एवं विद्यालयी विषयों की समझ( मूल्य शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, आवश्यकता) Meaning and Definitions of Values

मूल्यों का अर्थ एवं परिभाषाएँ(Meaning and   Definitions of Values) 'मूल्य' सहित जीवन ही अर्थपूर्ण होता है, मूल्यरहित जीवन का कुछ भी महत्त्व नहीं होता है। जो मनुष्य मूल्यों को महत्त्व देता है, वो समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। ऐसा व्यक्ति समय को महत्त्व देता है, तथा वह प्रत्येक पल का भरपूर आनन्द लेता है एवं उसका भरपूर उपयोग करता है। अतः प्रत्येक वस्तु जिसका महत्त्व होता है, उसे हम मूल्य कहते हैं।                                               सत्य, ईमानदारी, अच्छाई आदि 'मूल्य' हैं, जबकि झूठ, बेईमानी, आदि 'अवमूल्य' हैं। Value शब्द का उद्भव 'Valure' से हुआ है जो कि लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य महत्त्व, उपयोगिता अथवा वांछनीयता से लगाया जाता है। मूल्य समाज में विभिन्न आदर्शों, प्रतिमानों के रूप में समाज को उचित दिशा निर्देशन प्रदान करते हैं।समाज में व्याप्त मूल्य एवं आदर्श सामाजिक व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण की दृष्टि से वांछनीय एवं उपयोगी हैं। मूल्य एक ऐसी आचरण-संहिता या सद्गुणों का समूह है, जिसे व्यक्ति अपनाकर अपने व्यक्तित्व का विकास

विद्यालयी पाठ्यचर्या,पाठ्यक्रम,पाठ्यसामग्री का अर्थ एवं परिभाषाएँ (meaning and definitions of curriculum, syllabus and content) in language across the curriculum, understanding discipline and school subjects in hindi

विद्यालयी पाठ्यचर्या का अर्थ एवं परिभाषाएँ(Meaning and Definitions of School Curriculum) :- पाठ्यचर्या अं ग्रेजी भाषा के करीकुलम (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। करीकुलम शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। यह शब्द ' कुरैर ' से निर्मित हुआ है। कुरैर का अर्थ है- दौड़ का मैदान । अतः पाठ्यचर्या वह दरिया है जिसे किसी व्यक्ति को अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए पार करना होगा। इसे वह साधन भी कहा जा सकता है जिसे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। पाठ्यचर्या को विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार परिभाषित किया है- बबिट के अनुसार, "उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और 24 घण्टे की जा रही समस्त क्रियाएँ पाठ्यचर्या के अन्तर्गत आ जाती हैं।" ड्यूवी के अनुसार, “सीखने का विषय या पाठ्यचर्या पदार्थों, विचारों और सिद्धान्तों का चित्रण है जो निरन्तर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण के साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।" राबर्ट एम.डब्ल्यू. ट्रेवर्स के अनुसार, "एक शताब्दी पूर्व पाठ्यचर्या की संकल्पना उस पाठ्यसामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की

विषयों एवं विद्यालयी विषयों की समझ(अध्यापक शिक्षा से संबंधी सुझाव, अध्यापक के दोष, अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव, व्यावसायिक शिक्षा की उन्नति (Progress of Professional Education), शिक्षक प्रशिक्षण की अवधि (Time Period of Teacher's Training), प्रशिक्षण संस्थाओं की उन्नति (Progress of Training Institutions),

  अध्यापक शिक्षा से संबंधी सुझाव  : - शिक्षा की गुणात्मक उन्नति हेतु अध्यापक की व्यवसायिक शिक्षा का ठोस कार्यक्रम अनिवार्य है।  इस महत्व को ध्यान में रखते हुए आयोग ने अध्यापक शिक्षा के दोष तथा उसमें सुधार के लिए  निम्नलिखित सुझाव दिए गए :-   अध्यापक के दोष :- आयोग ने अध्यापक शिक्षा के निम्नलिखित दोष बताए हैं- i) प्रशिक्षण संस्थाओं का कार्य निम्न कोटि का है। ii) प्रशिक्षण संस्थाओं में योग्य अध्यापकों की कमी है। iii) पाठ्यक्रम में सजीवता, और वास्तविकता का अभाव है। iv) शिक्षण विधियों में नवीनता नहीं है। v) शिक्षकों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण परम्परागत है। vi) प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षण देने वाल संस्थाएँ  का इन विद्यालयों की दैनिक  समस्याओं से कोई  संबंध नहीं  है। vii) माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक प्रशिक्षण देने वाली      संस्थाओं का इन विद्यालयों की दैनिक समस्याओं से कोई        संबंध नही है।   अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव :- अध्यापक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-  i)  अध्यापक शिक्षा के विषय को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्

शिक्षा में स्मार्ट फोन का प्रयोग हिंदी में (use of mobile phone in Education in hindi), फोन का use education मे in hindi in ict

जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ऐसा फोन जो स्मार्ट तरीके से काम करता है। एेसा स्मार्ट तकनीकी तरीका जिसके कारण कोई भी व्यक्ति अधिक से अधिक कार्यो को करने के लिए सबसे पहला विकल्प स्मार्ट मोबाइल को समझता है।        दिन-प्रतिदिन हो रहे तकनीकी परिवर्तनों ने वर्तमान में इंटरनेट व स्मार्ट फोन दोनों ने मिलकर केवल फोन ही स्मार्ट नही बनाया है। बल्कि उसे प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी आजकल स्वयं को स्मार्ट व्यक्ति समझने लगा है। स्मार्ट फोन की सहायता से शिक्षा, व्यापार व एक-दूसरे से संचार आदि में सहायता मिलती है।अपने फोन को इंटरनेट से कनेक्ट करके प्रत्येक व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में सम्पर्क स्थापित कर सकता है। ठीक इसी प्रकार स्मार्ट फोन शिक्षा में भी कार्य करता है। शिक्षा प्राप्ति के लिए स्मार्ट फोन के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। ऐसे तकनीकी साधनों (स्मार्ट फोन) के कारण दूरस्थ शिक्षा का विकल्प उपलब्ध हो सका है। ये विकल्प निम्न हैं:- (1.) ऑनलाइन जानकारी, (2.) मल्टीमीडिया तकनीकी शिक्षा, (3.) ई-लाइब्रेरी, (4.) ई-शिक्षण, (5.) ई-अनुवर्ग(E- tutorial), (6.) ई-पत्रिक, (7.) MOO

EDU-SAT का अर्थ, आवश्यकता व महत्व

EDU-SAT  का पूरा नाम (Education Satelite) शिक्षा उपग्रह है।भारत में सर्वप्रथम 20 सितम्बर 2004 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा प्रेक्षपण स्थल सतीश धवन अन्तरिक्ष केंद्र से सफल परीक्षण किया गया। यह ढाई वर्षों में 80,000 रूपये की लागत से बना है। यह 2 टन वाला उपग्रह धरती से 36 हजार किमी की ऊंचाई पर चक्कर काट रहा है। इसकी सहायता से शिक्षक व विद्यार्थी दुनिया के किसी भी कोने में एक आभासी कक्षा के अन्तर्गत शैक्षिक क्रिया सरलता से कर सकते हैं। भारत में 1975 से 2020 तक कई उपग्रहों का ISRO द्वारा सफल परीक्षण किया गया परन्तु 2004 में ऐडू-सैट पहला ऐसा शिक्षा से सम्बन्धित भारत का उपग्रह है जिसने दुनिया के किसी भी कोने में बैठे दो तरफा शैक्षिक संचार को सफल बनाया है। अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत की एकमात्र अंतरिक्ष एजेंसी है। इसरो का मुख्यालय बैंगलोर में है। इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एएस किरण कुमार है। 17 जनवरी 2020 को जीसैट-30 फ्रेंच गुआना से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया । यह उपग्रह ISRO द्वारा  INSAT-4A के प्रतिस्थापन के रूप में लॉन्च किया गया। यह इसरो द्वारा लॉन्च किया गया 41 वाँ संचा

ऑनलाइन मूल्यांकन का महत्व हिंदी में(importance of evalution in hindi) in ict

 (1.)  सुरक्षा :- ऑनलाइन परीक्षा की प्रक्रिया कागज और पेन आधारित परीक्षा से अधिक सुरक्षित है।कागज को अधिक समय के लिए सुरक्षित रख पाना संभव नहीं है।परीक्षा संबंधी वेबसाइट पर एक बार सभी प्रश्नों को अपलोड कर दिया जाता है जिसे विद्यार्थी एक साथ देख सकते हैं। इन प्रश्नों को सॉफ्टवेयर द्वारा फेर-बदल कर एक से अधिक बार परीक्षा में प्रयोग किया जा सकता है। ऑनलाइन परीक्षा से शिक्षकों को पेपर लीक जैसी समस्याओं का सामना नही करना पड़ता। इसमें में छात्रों को नकल करने का मौका नहीं मिल पाता जिस से छात्रों का सही विश्लेषण संभव हो पाता है।    (2.) परीक्षा में कम खर्च में सहायक :- आज के आधुनिक युग में भी विद्यालयों और कॉलेजों में परीक्षाओं में अधिक धंन खर्च होता है। प्रश्न और उत्तर प्रत्रिकाएं छपवाने से लेकर एक परीक्षा आयोजित करने के लिए विद्यालयों व कॉलेजों को बहुत खर्चा उठाना पड़ता है। ऑनलाइन परीक्षा परीक्षा वह विकल्प है जो अतिरिक्त खर्चों में कटौती में सहायक है। परिक्षा का संचालन पूर्ण रूप से तकनीकी का प्रयोग किया जाता है। जब विभिन्न स्थानों किसी प्रकार की प्रतियोगिता संबंधी परीक्षा आयोजित करनी होती है

मूल्यांकन व ऑनलाइन मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of evalution and online evalution in hindi)

मूल्यांकन हर क्षेत्र में आवश्यक है।उसी के आधार पर किसी विषय के संबंध में किसी तरह का निष्कर्ष निकाला जा सकता है।तकनीकी के निरंतर परिवर्तन के कारण हमे तकनीकी को शिक्षा में भी अपना लेना आवश्यक है। जिस तरह हर क्षेत्र का ऑनलाइन पृष्ठपोषण प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार शिक्षा का भी मूल्यांकन संभव है।जिस प्रकार ऑनलाइन परीक्षा संभव है उसी प्रकार ऑनलाइन मूल्यांकन भी संभव है। परंतु ऑनलाइन मूल्यांकन से पहले मूल्यांकन का अर्थ समझना आवश्यक है।  मूल्यांकन का अर्थ :-   मूल्यांकन दो शब्दों से मिलकर बना है- मूल्य+अंकन । अर्थात् किसी भी वस्तु,मनुष्य या क्षेत्र का मूल्यांकन करना।                            वैसे तो मूल्यांकन हर क्षेत्र में आवश्यक है परंतु शिक्षा में मूल्यांकन शब्द का प्रयोग छात्र के द्वारा अर्जित किये जाने वाले ज्ञान का आकलन करने के लिये करते हैं।छात्र के ज्ञान का मूल्यांकन उसकी परीक्षा के आधार के अतिरिक्त कक्षा में छात्र के व्यवहार,उसके द्वारा पूछे गये प्रश्न व छात्र द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर भी छोटे छोटे मूल्यांकन शिक्षा में किये जाते हैं। शिक्षा में मूल्यांकन के आधार पर पता लग

शिक्षा में प्रणाली उपागम तकनीक का प्रयोग पार्ट-3

(3.) प्रणाली उपागम तकनीक :- प्रणाली उपागम का अर्थ किसी भी कार्य को करने के लिए पूर्व नियोजन करना अर्थात् एक ऐसी प्रणाली बनाना जो कार्य को सही ढंग से करने में सहायक हो उसे प्रणाली उपागम कहते हैं।     प्रणाली उपागम का प्रयोग शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी के रूप में किया जाता है।प्रणाली उपागम हार्डवेयर व साफ्टवेयर के बीच पुल का कार्य करता है। आधुनिक युग में शिक्षा जितनी हार्डवेयर उपागम तकनीकी (मशीनीकरण तकनीकी) की आवश्यकता है उतनी ही सॉफ्टवेयर उपागम तकनीकी(मनोवैज्ञानिक सिद्धांत) की है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब इन दोनों को एक साथ प्रयोग किया जाता है तो वह प्रणाली उपागम कहलाता है।          उपर्युक्त दोनों प्रणालियों हार्डवेयर उपागम तकनीक व सॉफ्टवेयर उपागम तकनीक  में साम्य (Co-ordination) स्थापित करने,शिक्षा में तकनीकी का विस्तार करने में तीसरा पक्ष प्रणाली उपागम भी महत्वपूर्ण है। शिक्षण कार्य करते समय कक्षा में शिक्षण व अधिगम की विभिन्न परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है।इन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर हार्डवेयर उपागम तकनीकी (मशीनीकरण तकनीकी) व सॉफ्टवेयर उपागम तकनीकी (मनोवैज्ञानिक सिद्धांत) आव

शिक्षा में सॉफ्टवेयर उपागम तकनीक का प्रयोग पार्ट-2

(2.) द्वितीय/मृदुल या सॉफ्टवेयर उपागम तकनीक :- सॉफ्टवेयर वह है जिसे अपनी आँखों से न तो देख सकते हैं और न ही छू सकते हैं। इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। इसे केवल समझा जा सका है। परन्तु शैक्षिक तकनीकी की बात करें तो द्वितीय या सॉफ्टवेयर उपागम तकनीक में मशीनों का प्रयोग न करके शिक्षण व सीखने के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीकी का आधार मनोविज्ञान है। मनोविज्ञान में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन करना है। शिक्षक सॉफ्टवेयर उपागम तकनीकी में मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों, प्रविधियों, नीतियों व युक्तियों का प्रयोग शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए करता है। वह इन विधियों,प्रविधियों,नीतियों व युक्तियों का चुनाव अपनी कक्षा के बालकों को ध्यान में रखकर करता है जिस से एक निश्चित दिशा  बालकों के व्यवहार में परिवर्तन हो सके।             मशीनों का प्रयोग केवल पाठ्यवस्तु को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जा किया जा सकता है। मशीनों से बालक के व्यवहार का अध्ययन नहीं किया जा सकता। जबकि शिक्षा में व्यवहार का अध्

शिक्षा में हार्डवेयर उपागम तकनीक का प्रयोग पार्ट-1

आधुनिक समय में तकनीकी का प्रयोग हर क्षेत्र में किया जा रहा है। क्योंकि मनुष्य को दिन-प्रतिदिन हो रहे परिवर्तनों के अनुसार बदलना पड़ता है।इसी प्रकार शिक्षा में भी शैक्षिक परम्परागत तरीकों(मौखिक उच्चारण,रट्टा मारना) को छोड़कर शिक्षा में सहायक आधुनिक तकनीकी का अपनाना चाहिए। जो कि अध्यापक व छात्र दोनों के समय की बचत व सरलता से सीखने व सिखाने में सहायक है। आधुनिक शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से छात्र रुचि के साथ सीखते हैं जो कि शिक्षा के अधिक विस्तार व छात्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।  लुम्सडेंन ने शैक्षिक तकनीकी के तीन स्वरुपों का वर्णन किया है:- (1.) प्रथम/कठोर या हाइवेयर उपागम शैक्षिक तकनीक, (2.) द्वितीय/मृदुल या सॉफ्टवेयर उपागम शैक्षिक तकनीक,  (3.) तृतीय या प्रणाली उपागम तकनीक,  (1.) प्रथम/कठोर या हाइवेयर उपागम शैक्षिक तकनीक:- हार्डवेयर वह होता है जिसे हम छू और देख सकते हैं। और शैक्षिक तकनीकी में हार्डवेयर उपागम का अर्थ है- ऐसे हार्डवेयर उपागम जिन्हे देख व छू सकते हैं का प्रयोग करके विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करना। ऐसे हार्डवेयर उपागम जो शिक्षण प्रक्रिया में सहायक हो। ये हार्डवेयर

सोशल साइट क्या होती है और सोशल साइट द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में रहने के लिए समाज के लोगो सम्बन्ध बनाने ही पड़ते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह अपने समाज में अपने आस-पास के लोगों से ही सामाजिक सम्बन्ध बनाये। अगर ऐसा होता है तो वह केवल अपने आस-पास के समाज से ही परिचित हो सकेगा।       वर्तमान में दिन-प्रतिदिन हो रहे तकनीकी परिवर्तनों का प्रयोग कर एक ही स्थान पर बैठे एक बड़े समाज से सम्बन्धों को सरलता से बनाया जा सकता है।और यह सामाजिक संबंध एक दूसरे के हाल चाल पूछने के अतिरिक्त बच्चे अपनी शिक्षा संबन्धी समस्याओं को हल करने के लिए भी कर सकते हैं। अर्थात् विद्यालय व कॉलेज से अलग दुनिया के किसी भी कोने में बैठे विषय विशेषज्ञों व अपने ही समान कक्षा के बच्चों से शिक्षा संबंधी वर्तालाप कर सकें। इसके लिए विभिन्न सोशल साइट्स को बनाया गया है जिनको इंटरनेट के माध्यम से प्रयोग किया जा सकता है।  सभी सोशल साइट्स को इंटरनेट के माध्यम से अपने कम्प्यूटर,लेपटॉप व मोबाइल पर सरलता से प्रयोग किया जा सकता है। परन्तु किसी भी सोशल साइट का प्रयोग करने के लिए मोबाइल सबसे अच्छा विकल्प हैं क्योंकि मोबाइल का आकार छोटा होता है जिसे एक-

सूचना पोर्टल द्वारा ई-शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति हिंदी में ( Information portal fulfills the objectives of e-learning in information communication technology in hindi)

सूचना पोर्टल ई-शिक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने में निम्न प्रकार सहायक है- 1) किसी भी प्रकार के शैक्षिक कोर्स संबंधी सूचनाओं की      प्राप्ति :-  MOOC व MOODLE वर्तमान समय में ई-शिक्षण के अच्छे उदाहरण हैं। कुछ बच्चे किसी कारण से शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते जब उन्हें अपनी आयु के अनुसार लेनी चाहिए थी या कुछ बच्चे कोई ऐसा कोर्स करना चाहते है जो उनके शहर या कॉलेज/विद्यालय में उपलब्ध नहीं है वह MOOC व MOODLE जैसी वेबसाइट्स पर अपने स्थान पर बैठे किसी भी कोर्स की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।  2-) सूचना प्राप्त करने वाले और डालने वाले दोनों को लाभ:- वेबसाइट्स पर जो भी सूचनाऐं शिक्षा से संबंधित या अन्य किसी भी प्रकार की डाली जाती हैं वह सूचना डालने वाला ही डाल सकता है और हटा सकता है परंतु सूचनाओं को हटाने से उसे हानि ही होगी क्योंकि उसके द्वारा डाली गई सूचना को जितना अधिक देखा जाएगा और जितना अधिक एक-दूसरे से शेयर किया जाता है उतनी ही उसको आय की प्राप्ति होती है।अत: सूचना डालने वाले को आय की प्राप्ति होती रहती है और प्राप्तकर्ता को भी शिक्षा से संबंधित नई और पुरानी  हर प्रकार की सूचनाऐं मिलती

सूचना पोर्टल का अर्थ हिंदी में in ict(meaning of information portal in hindi)

सूचना पोर्टल के अर्थ को समझने से पहले सूचना व पोर्टल दोनो के अर्थ को अलग-अलग समझना चाहिये।सूचना का अर्थ है- किसी विषय से सम्बन्धित एकत्रित तथ्यों को सूचना कहते हैं। पोर्टल का अर्थ है- प्रवेशद्वार ।अर्थात पोर्टल इंटरनेट और पूरे विश्व के वेब के संदर्भ में वेबसाइट्स के समूह को कहा जाता है जहाँ पर में किसी विषय से सम्बन्धित सूचनाऐ प्राप्त होती है।पोर्टल वह स्थान है जहाँ विभिन्न वेबसाइट्स के जाल एक ही स्थान (पोर्टल) पर स्थित होती हैं।इन वेबसाइट्स पर विभिन्न प्रकार की सूचनाएं उपलब्ध होती हैं।  सूचना पोर्टल का अर्थ : -  सूचना पोर्टल को वेब पोर्टल या वेबसाइट भी कहा जाता है जिनसे भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए सूचनाऐं प्राप्त की जाती हैं।विभिन्न वेबसाइट्स के माध्यम से एक ही स्थान (पोर्टल) पर अलग-अलग प्रकार की सूचनाओं को उपलब्ध कराया जाता है। परन्तु इन सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए प्रयोगकर्ता को अपना एकाउंट बनाकर(ईमेल आई डी और पासवर्ड) लोग इन करना होता है।आज कल लगभग हर प्रकार की सूचनाओं को किसी भी स्थान प्राप्त किया जा सकता है जिससे हर क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकेे।जैसे-किसी विद्यालय व कॉलेज में कार्

भारत में अभिक्रमित अनुदेशन का इतिहास (History of Programmed Instruction in India in ict) हिंदी में

भारत में अभिक्रमित अनुदेशन का इतिहास (History of Programmed Instruction in India) : - भारत में अभिक्रमित अनुदेशन का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। सन् 1963 में सेन्ट्रल पैडागोजीकल इन्स्टीट्यूट (C.P.I.) इलाहाबाद में अभिक्रमित अनुदेशन पर तीन दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया तत्पश्चात् भारत के विभिन्न प्रदेशों में इस विषय पर गोष्ठियों का आयोजन किया गया। सन् 1965 में एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली (NCERT, New Delhi) के मनोविज्ञान विभाग द्वारा अभिक्रमित अनुदेशन पर दो सप्ताह का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। सन् 1966 में NCERT ने अभिक्रमित अनुदेशन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया और Indian Association of Programmed Learning (IAPL) का भी गठन किया गया। NCERT ने इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सन् 1967 में चण्डीगढ़ में अभिक्रमित अनुदेशन पर पुनः कार्यशाला का आयोजन NCERT द्वारा किया गया। सन् 1980 के बाद से अभिक्रमित अनुदेशन का अनुप्रयोग व्यापक स्तर पर किया जाने लगा। बड़ौदा यूनिवर्सिटी (C.A.S.E.), मेरठ यूनिवर्सिटी एवं हिमाचल यूनिवर्सिटी में एम.एड, एम फिल., एवं डॉक्टरेट स्तर के अध्ययन में अभि

अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ और महत्व हिंदी में (meaning and importance of Customized instruction / Meaning and importance of Programmed Instruction in hindi in ict b.ed 1st year)

 अभिक्रमित  निर्देशन को अंग्रेजी में Programmed Instruction कहते हैं। जिसका अर्थ है अनुदेशन देने के तरीके को पहले से नियोजित कर लेना। अभिक्रमित  अनुदेशन का शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि शिक्षा मे अधिगम की प्रक्रिया अनुदेशन की प्रक्रिया पर ही आधारित है। और यह अधिगम की प्रक्रिया अध्यापक और छात्र के बीच की अंतःक्रिया है। इस अंतःक्रिया में अध्यापक का कार्य अनुदेशन का होता है। और इसी अनुदेशन की प्रक्रिया पर ही छात्र का विकास निर्भर करता है। और यदि अध्यापक छात्रो को दिए जाने वाले अनुदेशन को अभिक्रमित (programmed) नही करता है तो छात्र का सर्वागींण विकास संभव नही है। अभिक्रमित अनुदेशन छात्र के विकास का मूल्यांकन भी करने में सहायक है कि छात्र का अनुदेशन के अनुसार विकास हुआ है या नही। 

अनुदेशात्मक तकनीकी की विषयसामग्री (Content of Instructional Technology).... UNIT-1

  अनुदेशात्मक तकनीकी की विषयसामग्री (Content of Instructional Technology) : - इस तकनीकी के अन्तर्गत कक्षा में या कक्षा के बाहर पाठ्य-वस्तु को प्रस्तुत करने की व्यवस्था को शामिल किया जाता है। अनुदेशनात्मक तकनीकी में पाठ्यसामग्री को छोटे-छोटे पदों में क्रम में बाँट दिया जाता है और विद्यार्थी प्रत्येक पद पर स्वयं सक्रिय रहकर अपनी गति के अनुसार सीखते हैं।अतः शिक्षण एक अनुदेशन है परन्तु अनुदेशन एक शिक्षण नहीं है। इस प्रकार अनुदेशनात्मक तकनीकी में निम्नलिखित विषयसामग्री शामिल की जाती है- अनुदशनात्मक तकनीकी का अर्थ एवं परिभाषा।        (Meaning and Definition of Instructional Technology) अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एवं परिभाषा।(Meaning and Definition of Programmed Instruction) अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार, विशेषताएँ, सिद्धान्त, अवधारणाएँ एवं उपयोग (Types,Characteristics,Theories,Assumptions and Uses of Programmed Instruction) श्रृंखला अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषा,अवधारणाएँ, नियम व स्वरूप(Meaning,Definition,Assumption, Laws and Form of Chain Programmed Instruction) शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन का

अनुदेशनात्मक तकनीकी की विशेषताएँ (Characteristics of Instructional Technology in hindi) हिंदी में, b.Ed 1st year

निर्देशात्मक तकनीकी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:- 1) अधिकतर तकनीकी का प्रमुख कार्य सूचना प्रदान करना है। 2) प्रतिक्रियात्मक तकनीकी के माध्यम से ज्ञाननीय उद्देश्यों           को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त किया जा सकता है। 3) छात्रों को इस तकनीकी से अपनी गति, अपनी क्षमता और       अपनी आवश्यकता के अनुसार सीखने के अवसर प्राप्त           होते हैं। 4) छात्रों को उनके सही संकेतों पर पुनर्बलन व पृष्ठपोषण            (फीडबैक) प्राप्त होता है। 5) यह तकनीकी दृश्य-श्रव्य सामग्री पर आधारित है। 6) इसके माध्यम से अनुदेशन सिद्धान्तों का निर्माण किया             जाता है। 7) इसमें अध्यापक की अनुपस्थिति में भी शिक्षण प्रक्रिया को       जारी रखा जा सकता है।इससे  योग्य अध्यापकों के अभाव         की पूर्ति भी की जा सकती है। 8) यह तकनीकी पाठ्यसमग्र के तत्वों के सही क्रम पर बल           देती है। यह तकनीकी मनोवैज्ञानिक और अधिगम के             सिद्धान्तों पर आधारित है। 9)  इस तकनीकी में शिक्षण को प्रतिकूल बनाने के लिए               मानवीय व अमानवीय दोनों साधनों का उपयोग होता है। 10) इस तकनीकी की सहायता से उद्देश

अनुदेशन तकनीकी की परिभाषाऐ हिंदी में (definitions of Instruction technology in hindi and english)

निर्देशन तकनीकी की  परिभाषाएँ : - एस.एम. मैकमूरिन के अनुसार, "अनुदेशन तकनीकी शिक्षण और सीखने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विशिष्ट उद्देश्य के अनुसार डिजाइन करने, चलाने और उसकी रेटेड करने की एक क्रमबद्ध रीति है। यह शोधकार्य और मानवीय सीखने और बातचीत प्रदान करने पर आधारित है। इसमें शिक्षण प्रभावकारी बनाने के लिए है। मानव और अमानवीय साधनों का प्रयोग किया जाता है। ” एसएम मैकमुरिन के अनुसार, "निर्देशात्मक प्रौद्योगिकी मानव उद्देश्यों पर शोध के आधार पर, विशिष्ट उद्देश्यों के संदर्भ में सीखने और सिखाने की कुल प्रक्रिया को डिजाइन करने, बाहर ले जाने और मूल्यांकन करने का एक व्यवस्थित तरीका है; संचार और मानव और गैर-मानव के संयोजन को रोजगार अधिक प्रभावी निर्देश लाने के लिए संसाधन। " सीगल के अनुसार , "निर्देशन तकनीकी शिक्षण की कला के पाठ्यचर्या में अधिग्रहण, विधायकों और विविधताओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करना है।" सीगल के अनुसार, “इंस्ट्रक्शनल टेक्नोलॉजी ने इसके लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है शिक्षण की कला में उद्देश्य, पाठ्यक्रम सीखने, विधियों और तकनीकों। " पॉल

आई. सी. टी. का आलोचनात्मक अध्ययन हिंदी में(definition and meaning of information communication technology) ICT in hindi code - 108

 बी.एड. का आठवां विषय कोड-108 आप यहाँ से पढ़कर अपना सवाल नीचे कॉमेंट करके पूछ सकते हैं।  तकनीकी सह-शिक्षण(TEACHING WITH TECHNOLOGY)   1. अनुदेशनात्मक तकनीकी (INSTRUCTIONAL TECHNOLOGY) : - - अनुदेशन तकनीकी दो शब्दों से मिलकर बना है अनुदेशन + तकनीकी । अनुदेशन (Instruction) का अर्थ है- सूचना प्रदान करना और तकनीकी (Technology) का अर्थ है- दैनिक जीवन में वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रयोग। अतः "सूचना देने में जिस तकनीकी का प्रयोग किया जाता है उसे अनुदेशन तकनीकी कहते हैं। यह कार्य (अनुदेशन देने का)अध्यापक के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों एवं विभिन्न  तरीकों  द्वारा भी किया जा सकता है जैसे- विभिन्न प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्री (Audio-Visual Aids) द्वारा विद्यार्थियो को निर्देशन दिया जा सकता है। वर्तमान समय में कक्षा में सीखने की परिस्थितियों  को रुचिकर  बनाने में तकनीकी शिक्षण की नई  व्यवस्था है। इस शिक्षण व्यवस्था में अध्यापक एवं विद्यार्थी के बीच अन्तःक्रिया (Interaction) का होना आवश्यक नहीं है इसीलिए इस तकनीकी द्वारा ज्ञानात्मक पक्ष का ही विकास हो पाता है। इससे क्रियात्मक व भावात्मक पक्ष क

अर्थशास्त्र शिक्षण (economics/eco method subject)b.ed 1st year in hindi (ब्लूम के शिक्षा संबन्धी उद्देश्यों का वर्गीकरण)

ब्लूम के शिक्षा संबन्धी उद्देश्यों का वर्गीकरण टॉपिक -2 का वीडियो लिंक नीचे दिया गया है। आप यहां से उसे डाउनलोड कर सकते हैं। https://drive.google.com/file/d/1A7CfP4finrbpqLFkPIikN7DFwInWcG2O/view?usp=drivesdk

अर्थशास्त्र शिक्षण की UNIT-2 टॉपिक-1

भौतिकी शिक्षण के लक्ष्य और उद्देश्य का टॉपिक -1 का वीडियो लिंक नीचे दिया गया है।  आप यहां से उसे डाउनलोड कर सकते हैं।  https://drive.google.com/file/d/18-r0vuWtCS7QLTbjeaE0PfoWW4efB_SE/view?usp=drivesdk