विद्यालयी पाठ्यचर्या,पाठ्यक्रम,पाठ्यसामग्री का अर्थ एवं परिभाषाएँ (meaning and definitions of curriculum, syllabus and content) in language across the curriculum, understanding discipline and school subjects in hindi

विद्यालयी पाठ्यचर्या का अर्थ एवं परिभाषाएँ(Meaning and Definitions of School Curriculum):-

पाठ्यचर्या अंग्रेजी भाषा के करीकुलम (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। करीकुलम शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। यह शब्द 'कुरैर' से निर्मित हुआ है। कुरैर का अर्थ है- दौड़ का मैदान । अतः पाठ्यचर्या वह दरिया है जिसे किसी व्यक्ति को अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए पार करना होगा। इसे वह साधन भी कहा जा सकता है जिसे जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

पाठ्यचर्या को विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार परिभाषित किया है-

बबिट के अनुसार, "उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और 24 घण्टे की जा रही समस्त क्रियाएँ पाठ्यचर्या के अन्तर्गत आ जाती हैं।"

ड्यूवी के अनुसार, “सीखने का विषय या पाठ्यचर्या पदार्थों, विचारों और सिद्धान्तों का चित्रण है जो निरन्तर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण के साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं।"

राबर्ट एम.डब्ल्यू. ट्रेवर्स के अनुसार, "एक शताब्दी पूर्व पाठ्यचर्या की संकल्पना उस पाठ्यसामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की जाती थी परन्तु वर्तमान समय.में पाठ्यचर्या की संकल्पना में परिवर्तन आ गया है। यद्यपि प्राचीन संकल्पना अभी भी पूर्ण रूप से लुप्त नहीं हुई है लेकिन अब माना जाने लगा है कि पाठ्यचर्या की संकल्पना में छात्रों की ज्ञान वृद्धि के लिए नियोजित सभी स्थितियाँ, घटनाएँ तथा उन्हें उचित रूप से क्रमबद्ध करने वाले सैद्धान्तिक आधार समाहित रहते हैं।"

कनिंघम के अनुसार, “पाठ्यचर्या कलाकार शिक्षक के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सकें।"

होर्नी के अनुसार, “पाठ्यचर्या वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है। यह सीखने की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार यह शिक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवं संवेदनात्मक तत्त्वों को व्यक्त करता है। समाज के क्षेत्र में यह उस सब की अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जातियों ने संसार के सम्पर्क में आने से किए हैं।"

नेशनल एजूकेशन एसोसिएशन (अमेरिका) के अनुसार, “विद्यालयों का कार्य क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कई बार अनेक ढंग से दिया जा चुका है, फिर भी यह प्रश्न बार-बार उठाया जाता है। कारण स्पष्ट है यह एक ऐसा शाश्वत प्रश्न है जिसका उत्तर अन्तिम रूप से कभी भी नहीं दिया जा सकता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक समाज एवं प्रत्येक पीढ़ी की बदलती हुई प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदलता रहता है।"

वाल्टर एस. मुनरो के शब्दकोष के अनुसार, “पाठ्यचर्या को किसी विद्यार्थी द्वारा लिए जाने वाले विषयों के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए। पाठ्यचर्या की कार्यात्मक संकल्पना के अनुसार इसके अन्तर्गत वे सब अनुभव आ जाते हैं जो विद्यालय में शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।"

ब्लाड्स के शिक्षा शब्दकोष के अनुसार, “पाठ्यचर्या को क्रिया एवं अनुभव के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किए जाने वाले ज्ञान और संकलित किए जाने वाले तथ्यों के रूप में। विद्यालयी जीवन के अन्तर्गत विविध प्रकार के कलात्मक, शारीरिक एवं बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते हैं।"

माध्यमिक शिक्षा आयोग ने पाठ्यचर्या को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया है-

माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, “पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाए जाते हैं बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है जिनको विद्यार्थी, विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेकों औपचारिक सम्पर्को से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।"

According to Report of Secondary Education Commission 1952-53, "Curriculum does not mean only the academic subjects traditionally taught in the schools but it includes totality of experiences that a pupil receives through multiple activities that goes on in the school, in the classroom,library,laboratory,workshop, playgrounds and in the numerous informal contacts between teachers and pupils. In this sense the whole life of school becomes the curriculum which can touch the life of the students at all points and help in the evolution of the balanced personality."


पाठ्यसामग्री का अर्थ (Meaning of Content):-

पाठ्यसामग्री किसी पाठ्यक्रम का आधार होता है यह वह सामग्री होती है जिसे पढ़ना होता है।सम्पूर्ण पाठ्यसामग्री पाठ्यक्रम के चारों ओर घूमती है। किसी भी पाठ्यसामग्री की पहचान करना आसान होता है। जबकि उसी पाठ्यसामग्री को परिभाषित करना अपेक्षाकृत कठिन होता है क्योंकि किसी भी पाठ्यसामग्री की पहचान तभी सम्भव हो पाती है जब हम पहले से उस।पाठ्यसामग्री से परिचित होते हैं अन्यथा पहचान करना सम्भव नहीं है। जबकि परिभाषित करने के लिए जरूरी है कि आप उस पाठ्यसामग्री को निर्मित करने वाले घटकों को जानते हों। तभी आप उसे परिभाषित कर पाएंगे अन्यथा घटकों की पहचान किए बिना पाठ्यसामग्री को परिभाषित करने पर हो सकता है कि आप जाने-अनजाने में किसी और पाठ्यसामग्री को ही परिभाषित करने लगे। उदाहरण के लिए- आप कार्य होता देखकर, ये तो कह सकते हैं कि यहाँ कार्य हो रहा है और अमुक व्यक्ति या जीव उस कार्य को कर रहा है परन्तु आप उस कार्य की परिभाषा आसानी से नहीं दे सकते। आप सरल रेखा तो खींच सकते हैं, किसी दूसरे के द्वारा बनाई गई सरल रेखा की पहचान भी कर सकते हैं परन्तु सरल रेखा की परिभाषा देना आसान नहीं है। इसी प्रकार आप व्यक्ति या पिण्ड को गति करते देखकर, पहचान सकते हैं कि वह व्यक्ति या पिण्ड गति कर रहा है परन्तु गति को आप कैसे परिभाषित करेंगे? घटकों की पहचान किए बिना आप अपने पास स्थित किसी पिण्ड की गति एक पल के लिए पहचान भी लेगे परन्तु दूर स्थित पिण्ड की गति को कैसे पहचानेंगे? इन सब का ज्ञान तभी सम्भव हैजब हमें पाठ्यसामग्री का ज्ञान हो।

                                  पाठ्यसामग्री को अन्तर्वस्तु भी कहा जाता है। पाठ्यसामग्री के अन्तर्गत चयन की अन्य सामान्य स्थितियों की तरह ही पाठ्यचर्या के लिए पाठ्यक्रम के चयन में भी प्रायः उपयोगिता एवं सार्थकता को आधार बनाने का प्रयास किया जाता है। पाठ्यक्रम का निर्धारण शैक्षिक उद्देश्यों के आधार पर ही किया जाता रहा है किन्तु इस सम्बन्ध में विशेष जागरुकता तथा निरन्तरता बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में आई है। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सम्पूर्ण पाठ्यचर्या की सामान्य संरचना आ जाती है। पाठ्यचर्या के अन्तर्गत उसी पाठ्यक्रम का चयन किया जाता है जो पाठ्यचर्या विशेष के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होते हैं।

पाठ्यक्रम (Syllabus):-

पाठ्यक्रम को पाठ्यविवरण के नाम से भी जाना जाता है। पाठ्यक्रम में पाठ्यसामग्री को सम्मिलित किया जाता है। पाठ्यक्रम से तात्पर्य है कि प्रकरण की निर्धारित रूपरेखा। पाठ्यक्रम द्वारा बालक का सम्पूर्ण विकास होता है। इसके द्वारा बोधात्मक, ज्ञानात्मक, शारीरिक, बौद्धिक,संवेगात्मक आदि विकास होते हैं। यद्यपि आज यह नहीं समझा जाता है कि विद्यालय में केवल ज्ञान का ही विकास होता है वर्तमान में अर्थ बदल गया है।इसके अन्तर्गत खेलकूद, योग, शारीरिक क्रियाएँ, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, राष्ट्रीय पर्व मनाना,नागरिकता के गुणों का विकास करना, मूल्यों का विकास करना, राष्ट्रीय एकता तथा भावात्मक एकता व धर्म निरपेक्षता को समझना, नेतृत्व के गुणों का विकास करना, सहायक सामग्री के प्रयोग को सीखना, स्काउट गाइड, एन.सी.सी., एन.एस.एस., बागवानी, भ्रमण का आयोजन, विशेष वर्कशाप का आयोजन आदि को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है जिसके कारण विभिन्न विषयों का व्यावहारिक ज्ञान भी बालक को दिया जाता है। इसे किसी विषय-वस्तु विशेष के विवरण तथा शिक्षण हेतु निर्मित करके छात्रों को एक सुव्यवस्थित रूप में छात्रों को प्रदान करता है जिसे पाठ्यवस्तु कहा जाता है। पाठ्यक्रम पाठ्यचर्या का सूक्ष्म भाग होता है। पाठ्यचर्या में आने वाली कुछ क्रियाएँ पाठ्यक्रम से बाहर होती हैं। पाठ्यक्रम का सम्बन्ध बालक के ज्ञानात्मक पक्ष के विकास से होता है। यह कक्षागत अध्ययन के अन्तर्गत आने वाली क्रियाएँ हैं। पाठ्यक्रम के अनुसार ही पाठ्य पुस्तकों का चयन किया जाता है तथा पाठ्य-पुस्तकें पाठ्यक्रम के अनुरूप ही लिखी जाती हैं। पाठ्यक्रम में निर्धारित पाठ्य-विषयों से सम्बन्धित क्रियाओं का ही समावेश होता है। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत किसी पाठ्यसामग्री का विवरण शिक्षण के लिए तैयार किया जाता है, जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है। दूसरे शब्दों में पाठ्यक्रम शिक्षण की पाठ्यसामग्री का निर्धारण करता है।
 
गुड के अनुसार, “पाठ्यचर्या एक कार्यालयी संदर्शिका होती है जो किसी कक्षा को किसी विषय के शिक्षण में सहायता के लिए किसी विद्यालय विशेष अथवा व्यवस्था के लिए तैयार की जाती है। इसके अन्तर्गत पाठ्यक्रम के लक्ष्य, परिणाम,अध्ययन सामग्री की प्रकृति, सहायक सामग्री,शिक्षण विधियाँ तथा उपलब्धि मापन के सुझाव भी सम्मिलित किए जाते हैं।"

क्रोन बैंक के अनुसार, “पाठ्य-पुस्तक आमतौर से अपरिपक्व छात्र के लिए लिखी जाती है।यह पाठ्य-वस्तु का संकलित रूप है। इसमें कई अध्याय होते है जिनका अध्ययन क्रमानुसार
किया जाता है। परवर्ती अध्यायों के अध्ययन से पहले इस बात की अपेक्षा की जाती है कि छात्र पूर्ववर्ती अध्यायों से परिचित हैं।"

According to Cronback, “A text book is usually written for immature learner. The text is organised as a course of study, so that the chapters are to be studied in sequence. Later chapters pre-supposes as acquaintance with earlier chapters.”

श्रीमती आर.के. शर्मा के अनुसार, "पाठ्य वस्तु से आशय किसी शैक्षिक विषय या विद्यालय की उस रूपरेखा से है जिसमें विद्यालय शिक्षक, विद्यार्थी एवं समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वांगीण विकास के अध्ययन तत्त्व समाहित होते हैं।"

हेनरी हरेप (Henry Hurap) के अनुसार, “पाठ्यक्रम केवल मुद्रित संदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है? पाठ्यक्रम की तैयारी पाठ्यचर्या विकास के कार्य का एक तर्कसंगत सोपान है।"

पाठ्यसामग्री में वह सामग्री अथवा शिक्षण बिन्दु सम्मिलित होता है जिसे शिक्षक शिक्षण में प्रयोग करता है। बहुत से पाठ्य-सम्बन्धी पाठ्यक्रम का समावेशन पाठ्यसामग्री में होता है अर्थात् पाठ्यचर्या का एक भाग है एवं पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम का सम्मिलित रूप है।



             

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