निर्देशात्मक तकनीकी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
1) अधिकतर तकनीकी का प्रमुख कार्य सूचना प्रदान करना है।
2) प्रतिक्रियात्मक तकनीकी के माध्यम से ज्ञाननीय उद्देश्यों को अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।
3) छात्रों को इस तकनीकी से अपनी गति, अपनी क्षमता और अपनी आवश्यकता के अनुसार सीखने के अवसर प्राप्त होते हैं।
4) छात्रों को उनके सही संकेतों पर पुनर्बलन व पृष्ठपोषण (फीडबैक) प्राप्त होता है।
5) यह तकनीकी दृश्य-श्रव्य सामग्री पर आधारित है।
6) इसके माध्यम से अनुदेशन सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है।
7) इसमें अध्यापक की अनुपस्थिति में भी शिक्षण प्रक्रिया को जारी रखा जा सकता है।इससे योग्य अध्यापकों के अभाव की पूर्ति भी की जा सकती है।
8) यह तकनीकी पाठ्यसमग्र के तत्वों के सही क्रम पर बल देती है। यह तकनीकी मनोवैज्ञानिक और अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित है।
9) इस तकनीकी में शिक्षण को प्रतिकूल बनाने के लिए मानवीय व अमानवीय दोनों साधनों का उपयोग होता है।
10) इस तकनीकी की सहायता से उद्देश्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन करके शिक्षण प्रक्रिया सरल किया जा सकता है।
11) यह तकनीकी पाठ्यसामग्री विश्रलेश्ण व पाठयसामग्री प्रस्तुतीकरण पर विशेष बल देती है।
12) यह तकनीकी शिक्षण प्रक्रिया में पाठ्यसामग्री के समायोजन को प्राथमिक और अध्यापक को द्वितीय या गौंण मानती है।
13) आसुबेल ने इन तकनीकी को सार्थक विद्यालयी अधिगम कहा है।
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