विषयों एवं विद्यालयी विषयों की समझ (अध्ययन विषयों के अन्य प्रकार) :- मिश्रित अध्ययन विषय (Fused Discipline), विशुद्ध अध्ययन विषय (Pure Discipline) , (discipline and understanding subjects:- types of understanding discipline and school subjects :- Fused Discipline ,Pure Discipline) in hindi b.Ed 1st year code - 105
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मिश्रित अध्ययन विषय (Fused Discipline) :-
समाजिक जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं ने एक तरफ तो विशिष्टीकरण को बढ़ावा दिया जिसके परिणामस्वरूप ऐसे विशेषज्ञों की संख्या में वृद्धि होती चली गई जो न केवल एक क्षेत्र विशेष बल्कि उसकी भी किसी एक विशिष्ट छोटी इकाई के सूक्ष्म अध्ययन में जुट गए जबकि दूसरी तरफ विभिन्न क्षेत्रों मे कार्यरत समस्त व्यक्तियों को अपने सामान्य जीवन के लिए अधिक से अधिक विविध ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य होता चला गया।
इस समस्या समाधान के उद्देश्य के परिणामस्वरूप विद्यालयों में अनिवार्य सामान्य पाठ्यचर्या के विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली गई जिससे पाठ्यचर्या बोझिल हो गई। इससे एक जटिल स्थिति उत्पन्न हो गई क्योंकि किसी भी विषय को बिना उसकी उपादेयता कम किए पाठ्यचर्या से निकाल पाना सम्भव नहीं लगता था।
इस जटिल स्थिति से निपटने के लिए शिक्षाविदों एवं विषय-विशेषज्ञों ने सभी दृष्टिकोणों से विश्लेषण करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला कि इस समस्या के समाधान का एक उपाय एक-दूसरे से सम्बद्ध विषयों का समूहीकरण हो सकता है। विभिन्न पाठ्य-विषयों का विश्लेषण करने पर यह अनुभव किया गया कि जहाँ एक दृष्टि से देखने पर कोई भी ऐसा विषय नहीं मिल पाता जिसे पूर्णतया पाठ्यचर्या से निकाला जा सके वहीं प्रायः सभी विषयों में कुछ ऐसे प्रकरण सम्मिलित हैं जिन्हें आंशिक अथवा पूर्णरूपेण पाठ्यचर्या से निकाल देने पर किसी प्रकार की हानि की सम्भावना नहीं है। इसी प्रकार कुछ प्रकरणों के विस्तृत अध्ययन की अपेक्षा उनकी सामान्य चर्चा से भी काम चल सकता है।
इस निष्कर्ष ने पाठ्य-विषयों के संगठन अथवा मिश्रण (Fusion) के सिद्धान्त पर आधारित व्यापक क्षेत्रीय पाठ्यचर्या को जन्म दिया जिसके अन्तर्गत इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र,अर्थशास्त्र आदि विषयों को मिश्रित करके सामाजिक विज्ञान तथा भौतिकशास्त्र,रसायनशास्त्र,जीवविज्ञान आदि विषयों को मिश्रित करके सामान्य विज्ञान जैसे विषय तैयार किए गए। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में विभिन्न अधिगम क्षेत्रों का भी समूहन किया जाता है उदाहरण के लिए- उच्चारण अभ्यास, शब्द लेखन एवं वर्तनी, सुलेख तथा अन्य भाषा कौशल,भाषा कलाओं के रूप में पढ़ाए जाते हैं। मिश्रित पाठ्यचर्या को व्यापक क्षेत्रीय पाठ्यचर्या कहते हैं।
विशुद्ध अध्ययन विषय (Pure Discipline) :-
विशुद्ध विषय से तात्पर्य उस विषय से है जो अन्य विषय से निश्चित नहीं किया गया होता है।उस विषय के नियम, सिद्धान्त, सूत्र तथा शिक्षण विधि उसी विषय के शिक्षण में उपयोगी होते है।वर्तमान समय में अधिकांश विषयों की विषय-सामग्री, सूत्र, सिद्धान्त तथा नियम कई विषयों से सह-सम्बन्धित होते हैं। विशुद्ध विषय में इस प्रकार का मिश्रण नहीं पाया जाता है। विशुद्ध विषय में सम्मिश्रण का अभाव होता है।विशुद्ध से आशय ज्ञान के विस्तृत क्षेत्र के आवश्यक अंगों तथा तत्त्वों को विशुद्ध (Pure) ढंग से प्रस्तुत करना है। इस प्रकार विशुद्ध के अन्तर्गत विषय को सम्मिलित या समूहीकृत न करके एकांकी रूप में विशिष्ट विज्ञान के रूप में प्रस्तुत करना होता है।इसके अन्तर्गत विषय के अधिगम क्षेत्रों का भी विशिष्टीकृत स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है।
विज्ञान तथा तकनीकी के क्षेत्र में विशुद्ध विषयों के ज्ञान का महत्व देखा जा सकता है। ये विषय विशिष्टीकरण के रूप में एक विशेष विशुद्ध ज्ञान से सम्बन्धित होते हैं जो सामान्य ज्ञान तथा विज्ञान से सर्वथा भिन्न स्वरूप लिए हुए होते हैं। विशुद्ध से आशय ही सर्वथा शुद्ध तथा मिश्रणरहित होने से लगाया जाता है। अतः विशुद्ध विषय भी सर्वथा शुद्ध तथा मिश्रण रहित होते हैं।
सार्वभौमिकता से तात्पर्य उस ज्ञान से होता है जो स्थान विशेष तक सीमित नहीं रहता है बल्कि सम्पूर्ण समाज में व्यापक रूप से फैला रहता है। अतः प्रत्येक परिस्थिति में इस ज्ञान को प्रयोग किया जा सकता है। सार्वभौमिकता में ज्ञान की विश्वसनीयता अधिक होती है। कुछ विद्वानों द्वारा अर्जित ज्ञान सार्वभौमिक ज्ञान की श्रेणी में आते हैं। इस ज्ञान को विश्व के किसी भी क्षेत्र में प्रयोग किया जा सकता है। इंजीनियरिंग तथा विभिन्न विषयों में प्रयुक्त सिद्धान्त तथा नियम सार्वभौमिक ज्ञान के उदाहरण हैं। सार्वभौमिक ज्ञान का ही परिणाम है कि हम उन वैध सिद्धान्तों का प्रयोग करके कार्य करने वाली एक जैसी मशीनों का निर्माण कर सकते हैं तथा संचार के साधनों के विकसित होने के कारण इनके हस्तान्तरण में भी सरलता कर सकते हैं। सार्वभौमिक विज्ञान का दायरा अत्यन्त विस्तृत अर्थात् सम्पूर्ण विश्व होता है। यही कारण है कि इस ज्ञान का उपयोग सम्पूर्ण विश्व के लोग कर सकते हैं। यह ज्ञान सामान्यीकरण के सिद्धान्त पर आधारित होता है अर्थात् प्रत्येक परिस्थिति में एक समान परिणाम लाता है।
वैज्ञानिक अनुसन्धान में कार्य एवं कारण तत्त्वों का विशेष महत्त्व है। इनके मापन की ऐसी विधियाँ विकसित हो गई है कि जिनके आधार पर कारण तत्त्व एवं कार्य तत्त्व के प्रकार्यात्मक सम्बन्धों का बहुत शुद्धता से अध्ययन किया जा सकता है। प्रकार्यात्मक सम्बन्धों का अध्ययन जन सूक्ष्म मापन के आधार पर शुद्ध अथवा वैज्ञानिक ढंग से करने के लिए कारण तत्त्व एवं कार्य तत्त्व को प्रभावित करने वाले बाधक तत्त्वों का उपयुक्त नियन्त्रण किया जाना आवश्यक है। कारण तत्वों के विभिन्न रूप कैसे होगें यह प्रमुखतः इस बात पर निर्भर करता है कि उद्दीपक का मान, गुण,तीव्रता, जटिलता, बारम्बारता, मात्रा, दिशा तथा सत्ताकाल कैसा है? कारण तत्वों का व्यवहार पर प्रयास कैसा होगा यह भी इन्हीं तत्त्वों पर निर्भर करता है। कार्य तत्त्व का स्वरूप कैसा होगा?यह भी कारण तत्त्वों पर ही निर्भर करता है। कार्य तत्त्व की तीव्रता, प्रतिक्रिया, मूल्य, मात्रा, दिशा,बारम्बारता, जटिलता और सत्ताकाल भी अनेक प्रकार से कारण तत्त्व से प्रभावित होता है।वैज्ञानिक अनुसन्धान में कार्य-कारण सम्बन्धों का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि इसी पर कार्यात्मक सम्बन्ध निर्भर होते है। किसी प्राणी के घटित व्यवहार अथवा व्यवहारों में होने वाले परिवर्तन इन्हीं कार्य-कारण सम्बन्धों के कारण होता है।
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Understanding disciplines and subject ka hindi note book
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